why is kunti called pritha / kunti pritha
देवी कुंती महाभारत की मुख्य महिला पात्रों में से एक थी। उन्हे महाभारत के प्रमुख पात्र, पांडवों और अंगराज कर्ण की माता के रूप में जाना जाता है।
पृथा और कुंती
जन्म के समय माता कुंती का नाम पृथा रखा गया। पृथा नाम पृथ्वी शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘पृथ्वी की संतान’
पृथा शब्द का एक अन्य अर्थ भी है जिसके अनुसार पृथा वह है जो सबको प्यारी है, जिसे सब स्नेह करते हो। माता कुंती का चरित्र भी कुछ ऐसा ही दिखाई पड़ता है, महाभारत में कही ऐसा उल्लेख नहीं है जहां माता कुंती का व्यवहार दूसरो के प्रति और दूसरों का व्यवहार कुंती के प्रति कटु प्रतीत होता हो।
पृथा के पिता शूरसेन एक यदुवंशी राजा थे, जिनका एक भाई कुंतीभोज भी था। कुंतीभोज के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने भाई शूरसेन से उनकी पुत्री पृथा को गोद मांग लिया।
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ऐसा ही हुआ ओर देवी पृथा को उन्हे सौंप दिया गया। कुंतीभोज इस कन्या को अपने साथ ले आए और इसे एक नया नाम कुंती दिया। यही से पृथा को कुंती नाम से भी जाना जाने लगा। पृथा का पुत्र होने की वजह से ही अर्जुन का नाम पार्थ है।
देवी कुंती का उल्लेख भागवत पुराण के दूसरे सर्ग में भी मिलता है, जहा उन्हे अत्यंत आकर्षक और बुद्धिमान बताया गया है।
कुंती भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन भी थी। इस प्रकार वे श्री कृष्ण की बुआ हुई।
पांडवों की ओर से शांति प्रस्ताव पेश करने के लिए श्री कृष्ण एक दूत के रूप में हस्तिनापुर पहुंचे, जहा उनका स्वागत बड़े जोरों शोरों से किया गया।
दरबार में कौरवों के साथ एक संक्षिप्त संवाद के बाद, कृष्ण अपनी बुआ कुंती से मिलने गए जहां कुन्ती ने उनसे अपने पुत्रों और बहुओं के विषय में पूछा।
उन्होंने कृष्ण को निर्देश दिया कि वह उनके पुत्रों को बताए कि उनकी माता ने क्या कहा है। कुंती के अनुसार, उनके लिए क्षत्रिय धर्म का प्रदर्शन करने का समय आ गया है ओर यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें कुंती को माता कहने के अधिकार से वंचित कर दिया जाए गा। आगे जो हुआ, इतिहास उसका साक्षी हैं।
कुंती का एक पुत्र कर्ण था जिसके जन्म से जुड़ी एक कहानी बड़ी रोचक है। अगर आप भी यह कहानी जानना चाहते हैं तो नीचे कमेंट करके बताए, हम इसे जल्द अपलोड करेंगे।
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