Aghora ganapati - Unknown form of ganesh god of a new beginning
अघोरा गणपति या भगवान गणेश का अघोरी रूप, जो बहुत ही कम ज्ञात है क्युकी इसका वर्णन भी पौराणिक लेखों में नहीं मिलता। कुछ लोग इसे गणपति की डार्क साइड या भगवान गणेश का अंधेर पक्ष भी कहते हैं।
लेकिन इसे भगवान के एक अंधेरे पक्ष के रूप में न समझें, हम इसे एक उग्र रूप की दृष्टि से समझेंगे। आप इसे एक फीयर फैक्टर भी कह सकते हैं।
हमने हमेशा भगवान गणेश की पूजा एक नई शुरुआत पर या किसी शुभारंभ पर होते देखी है। हम जिस गणेश रूप की बात कर रहे हैं, उसकी पूजा तंत्र-उपासकों द्वारा की जाती है।
तंत्र-उपासकों को हमेशा असुर या अंधकारमय ऊर्जाओं के पुजारी के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह सही नहीं है, किसी भी देवता या शक्ति की पूजा भी तंत्र-उपासना द्वारा की जा सकती है क्योंकि यह पूजा करने की एक विधि है।
भगवान गणेश के इस रूप की पूजा एक आम मनुष्य नहीं कर सकता है। उपासक सन्यासी होना चाहिए जो समाज का हिस्सा नहीं है। इसका भी एक कारण है। अघोरा गणपति को उच्छिष्ट गणपति तंत्र और हेरम्बा गणपति के समान माना जाता है। काले जादू को दूर करने के लिए हेरम्बा गणपति का बुरी शक्तियों से आह्वान किया जाता है।
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अघोरा गणपति और पेशवा साम्राज्य - Aghora Ganapati story of Peshwa Dynasty
किवदंतियों में गणपति को एक ऐसे तांडव के रूप में चित्रित किया गया है जिसने एक पूरे परिवार का सफाया कर दिया। पेशवा साम्राज्य 18 वीं शताब्दी की शुरुआत के दौरान भारत में बहुत प्रसिद्ध था, और पेशवा सवाई माधवराव सिंहासन पर शासन कर रहे थे।माधवराव बहुत लंबे समय से बीमार थे, और यह अनिश्चित था कि वे जीवित रहेंगे या नहीं। माधवराव के चाचा रघुनाथराव अपने भतीजे के निधन की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि वह सिंहासन चुरा सके।
उन्होंने अपने भतीजे का निधन सुनिश्चित करने के लिए मैसूर के अघोरी तांत्रिक कोटराकर गुरुजी से संपर्क किया। तांत्रिक ने रघुनाथराव को पंचधातु से निर्मित एक अघोर गणपति दिया और उन्हें चेतावनी दी कि जो कोई भी इस मूर्ति के संपर्क में आएगा उसे दुखद रूप से कष्ट भुगतना होगा। वह व्यक्ति जो मूर्ति की संपर्क में आए, माधवराव के छोटे भाई पेशवा नारायणराव थे, जिन्होंने अपने भाई को सिंहासन पर बैठाया।
रघुनाथराव और उनकी पत्नी आनंदी बाई ने नारायणराव की हत्या की साजिश रची क्योंकि वे पेशवा की गद्दी न मिलने से नाराज थे।
उनके आदेश पर हत्यारों का पूरा गिरोह शनिवारवाड़ा में घुस गया और नारायणराव की मदद करने वाला कोई नहीं था। उन्होंने युवा बालक को मार डाला।
नारायणराव ने अपने चाचा रघुनाथराव के कमरे की और भाग सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन कोई भी उनकी सहायता के लिए नहीं आया।
हत्यारों से भागते हुए नारायणराव अपने चाचा के कमरे में दाखिल हुए जहां वे अघोरी तांडव गणपति की पूजा कर रहे थे। नारायणराव के कमरे में घुसते ही हत्यारों ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। ऐसा कहा जाता है कि गणपति की मूर्ति को स्नान कराने के लिए नारायणराव के रक्त का उपयोग किया गया। इस देवता के लिए यह पहला बलिदान था, इसी पंक्ति में और भी मौतें हुईं और एक सिलसिला चल पड़ा।
अपने भतीजे की मृत्यु के बाद, रघुनाथराव भी आराम से नहीं रह पा रहे थे। उनके ही लोग उनके विरोधी बन गए, जिनसे वे विभिन्न स्थानों और अन्य राज्यों में जाकर बचते रहे। रघुनाथराव को मजबूर होकर पूना भागना पड़ा, जहाँ वे भी एक पीड़ादायी बीमारी के कारण चल बसे। शेडनिकर, जो रघुनाथ के निधन के बाद उस महल के प्रभारी थे, ने पूना शहर में कहीं इस मूर्ति को जमीन में गाड़ दिया ताकि इससे और मौतें न हों।
इस प्रकार बप्पा मोरया का अघोर रूप तांडव का पर्याय और विनाशक माना जाता है। भारत में कहीं पूजा तो क्या अघोरा गणपति की आरती भी नही की जाती।
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