पहला प्रेम विवाह और महाशिवरात्रि पर्व
किस प्रेमी युगल ने सर्वप्रथम दाम्पत्य जीवन में प्रवेश किया होगा, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है। इतिहास में पहले प्रेम विवाह का कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता।
हिंदू धर्म में विवाह के आठ प्रकारों में से एक गंधर्व विवाह होता है। इस प्राचीन भारतीय परंपरा में कोई संस्कार पूरे नही करने होते और न ही परिवार के सदस्य शामिल होते हैं। इसमें अग्नि को साक्षी मानकर प्रेमी युगल विवाह कर लेते हैं।
विवाह के पश्चात ही परिवार को सूचना दी जाती है। इतिहास में इस तरह के विवाह का एक प्रसिद्ध उदाहरण दुष्यंत और शकुंतला का मिलन है।
धार्मिक ग्रंथों के आधार पर, हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह ब्रह्मांड में होने वाला पहला प्रेम विवाह था।
प्रेम क्या है?
प्रेम की परिभाषा अस्पष्ट है। आजकल, अक्सर यह माना जाता है कि प्यार तभी होता है जब एक जोड़ा शादी करने से पहले एक साथ समय बिताता है और एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है।
हालाँकि, अतीत में बहुत सारी प्रेम कहानियाँ रही हैं जहाँ नायक और नायिका को प्यार तो हो गया, पर वे कभी मिले न हों।
समाज या संस्कृति में प्रेम की परिभाषा समय-समय पर बदलती रहती है।
युवा जोड़े आजकल एक साथ अपनी तस्वीरें लेते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। आजकल का चलन कुछ नया और आकर्षक दिखने और उसे सोशल मीडिया पर डालने का है। बॉलीवुड और हॉलीवुड की हस्तियां भी ऐसी अतिरंजित कहानियों पर फिल्म बनाने में बहुत रुचि रखती हैं।
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आइए जानते हैं दुनिया में पहला प्रेम विवाह first love marriage in the world
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कोई सामान्य सी घटना तो बिल्कुल नहीं थी, लेकिन उनकी नियति ने दुनिया की सबसे स्थायी प्रेम कहानि को जन्म दिया। किसी भी लव बर्ड की तुलना उनसे नहीं की जा सकती।
भगवान शिव और माता पार्वती के बीच इस प्रेम कहानी के उतार-चढ़ाव यह प्रदर्शित करते हैं कि इस दुनिया के रोमांटिक चित्रण में सच्चा प्यार आखिरकार कैसे सफल होता है।
मां पार्वती प्रजापति दक्ष की बेटी थीं और अपने पहले जन्म में भगवान शिव की दुल्हन थीं। पहले जीवन में सती उनका नाम था।
सती दक्ष को सबसे प्रिय संतान थीं, और पुराणों के अनुसार, अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध, उन्होंने शिव से विवाह किया था।
राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में शिव को आमंत्रित नही करते हैं। जब सती इस बात का विरोध करती हैं, तो दक्ष शिव को अपमानित करते हैं।
द्वेष में आकर मां सत्य उस यज्ञ के अग्निकुंड में कूदकर आत्महत्या कर लेती है। शिव प्रकट होते हैं और मां सत्य के जलते शरीर को उठाकर तांडव करते हैं।
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शिव का भयंकर रूप देख कर देवता गण विचलित हो उठते है और भगवान विष्णु से कुछ उपाय करने को कहते हैं।
भगवान विष्णु अपने चक्र का प्रयोग कर मां सत्य के शरीर को विखंडित कर देते हैं। माना जाता है की भारत की भूमि पर जहा सती के शरीर के टुकड़े गिरे, वहा माता की शक्ति पीठ बनाई गई और उनकी पूजा अर्चना वहा आज भी की जाती है।
इस त्रासदी से शिव इतने दुखी हैं कि उन्होंने सांसारिक चिंताओं में रुचि खो दी और संन्यास लेने का फैसला किया। उसके बाद, वे हिमालय वापस आ गए और वर्षों तक ध्यान में बैठ गए।
सती का उनकी मृत्यु के बाद पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ। वह मैनावती और हिमालय पर्वत के देवता और शासक हिमवत की बेटी थी।
पार्वती आकर्षक और अत्यंत बुद्धिमान थीं। उनकी भगवान शिव के प्रति तीव्र भक्ति थी जो उनके शुरुआती वर्षों से चली आ रही थी।
यहां तक कि उसने अपने दोस्तों के साथ खेलने के बजाय भगवान शिव से प्रार्थना करना चुना। उससे शादी करने के लिए, पूरे भारतवर्ष से निमंत्रण आया करते,परंतु पार्वती ने सब अस्वीकार कर दिए।
वह केवल भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी और उनकी तपस्या में लग गई।
देर सवेर भोलेनाथ का मन पिघला और उनकी ध्यान मुद्रा समाप्त हुई। एक दिन वे नंदी पर सवार होकर, भूत पिसाचो की भारत लेकर आते हैं और मां पार्वती से विवाह कर उन्हे कैलाश ले जाते है।
महाशिवरात्रि जो प्रेम मिलन का दिवस है, शिव पार्वती की प्रेम कहानी के सम्मान में हर साल महापर्व के रूप में मनाया जाता है।
||इति श्री||
ॐ नमः शिवाय
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